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Showing posts from June, 2022

इक होड़ लगी थी सबको आगे जाना था....

इक होड़ लगी थी सबको आगे जाना था हम वहीं रुक गए शायद मेरा वहीं ठिकाना था मैंने देखा तो देखा क्या इक गुलशन इक ख़ुशबू और इक ये ज़ालिम ज़माना था आधा भी लिख दे कैसे कोई उसको मैंने देखा था जिसको वो यकसर दीवाना था कैसे करते इज़हार-ए-मोहब्बत हम तुमसे नाहीं कोई ठिकाना था नाहीं आब-ओ-दाना था लाख लगाई तदबीरें हमने ग़म की निजात को बस इक मेरा सर था बस इक तेरा शाना था जपते जपते पी का नाम रात हुई भोर हुई जागे तो पाए बिखरा तस्बीह का दाना था हम क्या बतलाए अपनी क़िस्मत का तक़ाज़ा ‘सुब्रत’ उसको खोना था ‘सुब्रत’ उसको पाना था.... ~©अनुज सुब्रत