आज शाम जब मुझे भूख लगी तो अपनी माँ के पास गया और माँ की साड़ी का पल्लू पकड़ कर , खींचते हुए उससे शिकायती लहजे में कहा कि, “ माँ तुम कहाँ थी, मैं तुम्हें बड़े देर से ढूंढ रहा था.....तुम्हें मालूम भी है, फिर मैं चेहरे पर गुस्सा रखते हुए तिरछी नज़रों से ऊपर की ओर उसे देखता हूँ, तो वह बड़े प्यार से अपने घुटनों पर बैठ जाती है और मुझसे पूछती है...... क्या हुआ मेरे राजा बेटा को , भूख लगी है क्या....??
तो मैं झटपट से सर हाँ में हिला देता हूँ....
फिर वह पूछती है, “क्या खाओगे बेटा”, तो मैं भी फलां-फलां पकवानों की फरमाइशें कर देता हूँ और वह हर चीज़ से बेखबर , मदहोश हो कर मुझे सुनती रहती है.....
लगता है जैसे मेरे शिकायती लहजे और तिरछी नज़रों ने उस पर कोई जादू-सा कर दिया हो।
लगता है जैसे वह अपनी बदनसिबियों और ज़िन्दगी की उलझनों से आज़ाद हो गयी, सिर्फ मुझमें ही मग्न हो।
और,
उसे देखो तो लगता है कि मानो उसने मुझे अपने हमसायों, अपनी परेशानियों से बहुत दूर रखा हो..... और मैं भी इन सब से बेखबर था।
मैंने कभी भी उसको परेशानियों में नही देखा, वह जब भी मेरे पास आती या जब भी मैं उसके पास जाता, हर वक़्त उसके चेहरे पर हँसी पाता,
मानो शायद उसने दुखो से सौदा कर लिया हो कि तुम मुझे सौ गुणा लगान के साथ दुख दे देना, लेकिन मेरे बेटे के सामने मुझे एक मुस्कुराता चेहरा दे दो......।
फिर वह मेरी फरमाइशें सुनते-सुनते मुझे दुलार करते हुए अपनी गोद में उठाती है और मुझे अपने साथ रसोई में ले जाती है।
जब वह डब्बा खोलती है तो उसे मालूम पड़ता है कि दाल-चावल खत्म होने के कगार पर है, वह पिछले दिन लाना भूल गई थी,
तो,
वह दराज़ से कुछ रुपये निकालती है और दरवाजे पर ताला लगा कर मुझे अपने साथ ले कर दुकान की ओर जाने लगती है।
तभी मेरे द्वारा पैसे के लिए ज़िद करने पर की, “ माँ मुझे भी पैसे चाहिए, माँ मुझे भी पैसे चाहिए “ तो वह दस रुपये मेरे हाथों में भी दे देती है और मैं रास्ते भर यह सोचता रहता हूँ कि, जब मैं दुकान पर पहुँच जाऊँगा तो मैं दुकानवाले चाचा से इन पैसे के बदले यह खरीदूँगा , यह खरीदूँगा , नही वह खरीदूँगा......... और इन्ही सब बातों को लिए मैं अपनी माँ के साथ दुकान पर पहुँचता हूँ , पर वहाँ पर ज़ुबान खामोश ही रहती है। और मैं, माँ के साथ घर आ जाता हूँ, वह मेरे लिए बहुत ही स्वादिष्ट पकवान बनाती है।
कभी वह अपने हाथों से मुझे दूध भात खिलाती........।
कभी चाँद को पाने की ज़िद करता तो वह चाँद को मेरे लिए आसमान से पानी के कटोरे में उतार के ले आती......।
कभी सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता “यह कदम का पेड़ अगर माँ होता यमुना तिरे” गुनगुनाती.....।
वह मुझे अपनी गोद में उठा के घुमाने ले जाती।
मैं जब भी सो के उठता और जब भी उसको अपने आस-पास नही पाता, मैं डर जाता कि वह कहाँ चली गई और रोने लगता....., तब वह मुझे बरामदे में ले आती, वहाँ मुझे अपने गोद में बिठा कर, आसमान की ओर दिखा कर नई-नई कहानियाँ बुनती और सुनाती मुझे.....।
पर, शायद वह अंदर से बहुत टूट चुकी थी, अपनी परेशानियों से हार चुकी थी, अपनी ज़िन्दगी से थक चुकी थी।
एक दिन सब खत्म हो जाता है......,
जब उसको फंदे ले लटका पाता हूँ मैं......, मैं खामोश-सा वहाँ ठहर जाता हूँ....., लगता है मानो शायद दुख ने आज उससे सौ गुणा लगान वसूल कर लिया हो.....।
“ यूं तो ज़िन्दगी का हर एक लम्हा एक कहानी है....
पर, ना तो तुम मुझे समझोगे, नाही फंदे पर लटकी मेरी माँ के जज़्बातों को.....। "
Very emotional story with hidden meaning how a mother loves her children.
ReplyDeleteThank you🤗🤗
DeleteThis untold story, told your feeling.. You are the future of your mother. Keep it bright
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