सबको सब कुछ मिला हमको कुछ नही मिला.... खुदा भी अमीरों का निकला फकीरो को कुछ नही मिला..... वालदा, जानाँ को छीन लिया अश्को के बदले लहूँ मिला.... वो क्या कहर ढहायेगा अपनो से मुझको क़हर मिला.... लिखने को जहाँ बंदिशे मिली कलम को वहाँ कुछ नही मिला.... पत्थर था, ज़ुस्तज़ू की मैंने मगर उसका दिल नही मिला.... उसकी यादों का शज़र मिला पत्तों से मुझको शुकून मिला.... तुम जा रहे हो वहाँ, तो कह देना, ‘सुब्रत’ को यहाँ कुछ नही मिला...... ~Anuj Subrat Written by Anuj Subrat Follow me on Instagram as @anuj_subrat
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