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सबको सब कुछ मिला.....

सबको सब कुछ मिला हमको कुछ नही मिला.... खुदा भी अमीरों का निकला फकीरो को कुछ नही मिला..... वालदा, जानाँ को छीन लिया अश्को के बदले लहूँ मिला.... वो क्या कहर ढहायेगा  अपनो से मुझको क़हर मिला.... लिखने को जहाँ बंदिशे मिली कलम को वहाँ कुछ नही मिला.... पत्थर था, ज़ुस्तज़ू की मैंने मगर उसका दिल नही मिला.... उसकी यादों का शज़र मिला पत्तों से मुझको शुकून मिला.... तुम जा रहे हो वहाँ, तो कह देना,  ‘सुब्रत’ को यहाँ कुछ नही मिला...... ~Anuj Subrat Written by Anuj Subrat Follow me on Instagram as @anuj_subrat

अल्लाह उसका किधर है......

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छोड़ तू ये जहां क्या है.....

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दिल के करार का बस इंतज़ार है.....

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पिता.... Father's Day Special

एक दिन भरी महफ़िल , से पुछा मैंने  पिता की ऐहमियत , जानता है कोई तो  भरी महफ़िल से  आवाज आई  हाँ जानता हूँ मैं  हाँ जानता हूँ मैं , इसी पर एक छोटी-सी  कहानी शुरु होती है  पिता के प्रति बच्चों एक  मुँह-जुबानी शुरु होती है.....  माँ जब नानी के घर , चली जाती थी तो  पिता ही रोटियाँ बना के  हमे खिलाते थे  जब माँ की याद, आती थी तो  पिता ही पल-भर में  माँ बन जाते थे।  यूँ पिता के साथ एक अज़ीब -सा  रिश्ता था  पल-भर में दोस्त, तो  पल-भर में फ़रिश्ता थे ..... पिता न होते तो  शायद ये जग सुना था  कैसे बताऊँ, पिता की बाते  पिता के बिना ये घर भी  सुना-सुना था।  कभी कंधे पे बैठा  यूँ मुस्कुराते थे  कैसे बताऊँ  इसी बात पे तो पिता  हम सबको भाते थे....   कुल्फी के ठेले पे  बैठा हमे  यूँ कुल्फियाँ हमे दिलाते थे  इसी बात पे तो पिता  हम सबको बहुत भाते थे....   शायद ये जो कुछ भी  लिख रहा हूँ मै  उनकी ही बदौलत है  आज फ़िर भरी महफ़िल में  उनसे मिलने की दिलायत है....   यूँ तो ना कहना, पर  पिता के लिए लफ्ज़ ना है मेरे  पास में  पर वह तो बसे है  मेरे दिल और साँस में..... बस इतनी-सी बात पे  अपने लफ्ज़ो को विराम देता हूँ 

तेरा इश्क़ भी तेरी तरह निकला है .....

तेरा इश्क़ भी तेरी तरह निकला हैं तेरा इश्क़ भी झूठा निकला है रहने की बात करती थी वो क़यामत तक मेरे साथ देखों, आज उसके घर से उसका जनाज़ा निकला है कितना बदनसीब है सुब्रत, चेहरा तक नही देखा उसका चार कंधे की ज़रुरत है मेरा दो ही निकला है उसके मौत की नमाज़ भी अदा नही की मैंने रूह कह रही है सुब्रत तू कितना खुदगर्ज़ निकला है अलम भी आया है अब यक़ीनन मेरे आलम में इस चेहरे का नूर भी अब दम तोड़ निकला है दवा-ए-आरज़ू कर दो तुम मेरे आरज़ू की दिल अब उसको पाने को बेहिसाब निकला है ख़िलवतो से अब दोस्ती इस क़दर हो गयी है रफ़ीक़ मयस्सर ज़िंदगी का ताबीर, फ़कत यायावर निकला है                                                                                                ~ अनुज सुब्रत शब्दार्थ:- अलम- दुःख, शोक आलम- संसार, दुनिया नूर- प्रकाश ख़िलावतो- एकांत जगह मयस्सर- उपलब्ध रफ़ीक़- दोस्त ताबीर- अर्थ  फ़कत- सिर्फ, केवल यायावर- बंजारा

Life's Turning Point

“Does life really takes turns”,  asked by a practical student Stephen to himself. He was a ravishingly student of physics, by applying so many law of physics, he wanted to get the answer of that question, but he felt that he was failed to got the answer of this question. His mind couldn’t able to understand, what is life, who discovered it, life follows whose command......, Does it has a  shape like a cycle rim, which got its turn equally and how its perform. He was still found to solving these questions with help of Physics formulas, but Stephen was quite unconscious about, that all the law of nature and special knowledge became down near the shadow of life. But, a day when unbelievable situation was happened in the front of Stephen’s eyes,  But he was unawared with this situation that would very soon became the answer of Stephen’s question.... That Situation was like this.... When he was went for a ride and continuing his way then he saw a heart entering  scene, that a untouchable gi