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Showing posts from September, 2021

सियाह-रातों का सवेरा क्यों नहीं होता....

सियाह - रातों का सवेरा क्यों नहीं होता मेरा दिल अब मेरा क्यों नहीं होता   नशेमन को मेरे किसने उजाड़ दिया अब कहीं भी मेरा बसेरा क्यों नहीं होता   ज़िंदगी की तमन्ना कब थी याद नहीं ज़िंदगी अब तेरा भरोसा क्यों नहीं होता   मेरी उड़ान को क़फ़स देने वाले सुन ले तेरे साथ भी मेरे जैसा क्यों नहीं होता   आते जाते है लोग मेरे नसीब में ‘सुब्रत’ पर कोई भी शख़्स तुम - सा क्यों नहीं होता..... ~©अनुज सुब्रत

ख़्वाबों की दुनिया ख़्वाबों के वास्ते......

  ख़्वाबों की दुनिया ख़्वाबों के वास्ते मुझे ज़िंदा रहने दो किताबों के वास्ते   मत उजाड़ो इन बाग़ों को बाग़बान इनको भी रहने दो गुलाबों के वास्ते   जिनके दीन - धर्म में मांस हराम है उनको सफ़ में देखा है कबाबों के वास्ते   शफ़क़ चेहरा दिलकश आँखें उसकी कोई दर पे खड़ा है जबाबों के वास्ते   हम अच्छे है तो एक कोने में है ‘सुब्रत’ दुनिया जी रही है ख़ाना - ख़राबों के वास्ते...... ~©अनुज सुब्रत