ख़्वाबों की दुनिया ख़्वाबों के वास्ते
मुझे ज़िंदा रहने दो किताबों के वास्ते
मत उजाड़ो इन बाग़ों को बाग़बान
इनको भी रहने दो गुलाबों के वास्ते
जिनके दीन-धर्म
में मांस हराम है
उनको सफ़ में देखा है कबाबों के वास्ते
शफ़क़ चेहरा दिलकश आँखें उसकी
कोई दर पे खड़ा है जबाबों के वास्ते
हम अच्छे है तो एक कोने में है ‘सुब्रत’
दुनिया जी रही है ख़ाना-ख़राबों के वास्ते......
~©अनुज सुब्रत
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