आया है सावन, अब मैं अब्र बन आऊँगा
तेरे आँगन को मैं भींगा जाऊँगा....
तुम मना करोगी तो, मैं रुक जाऊँगा
पर यह मेरा अंत नही, मैं फिर आऊँगा....
पत्थर को चिन्हित कर जाऊँगा
जब भी मैं पत्थर से तकराऊँगा....
मैं अठरह वर्ष का तुम सतरह वर्ष की
तुझमें एक असर बन मैं रह जाऊँगा....
मैं हर इक दिन को रात बनाऊँगा
जब भी तुमको ख्वाबो में अपने पाऊँगा....
जब भी सावन आएगा, मैं आऊँगा
सूरज के भाँति, तुमको न मैं पाऊँगा....
फूलों पर बूंदें , झूलो पर बूंदें
जब भी तोड़ोगे, मैं नीचे गिर जाऊँगा....
जब भी तेरे गेसुओं से तकराऊँगा
मैं खुशबू बन उड़ जाऊँगा....
~ Anuj Subrat
अब्र-- बादल
गेसुयों-- जुल्फों
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