वह चिट्ठी पर पैगाम यह लिखती
मिलने को हर शाम वह लिखती
मिलने पर खामोश वह रहती
पैंग़ामों में शब्दों का जाम वह लिखती
कुछ कहती, पर होंठों से कोई शब्द नही
बहकी बहकी-सी हर शाम वह लिखती
सच कहूँ तो मीरा-सी दीवानी थी
झुठ कहूँ तो मुझको श्याम वह लिखती
मुझको देखो, उसको मुझमें पाओगे
मुझको ही अपना अंजाम वह लिखती
~ अनुज सुब्रत
Written by Anuj Subrat
Follow me on Instagram as
@anuj_subrat
Kya baat! kya baat!!
ReplyDeleteKya baat hai bhai
ReplyDelete