वह कहते है दर्द छुपा के चलो
वह कहते है जरा मुस्कुरा के चलो
अश्कों की बारिश से भींगी है रातें
जरा दिन में भी चरागे जला के चलो
अंजुमन में शोक सा माहौल है अगर
होंठों पर नग़मे गुनगुना के चलो
सितम पर सितम, हुआ मैं बेहाल
जहां में जरा दम-ख़म दिखा के चलो
पुरवाई है इठलाती, तन्हाई अकेली
आँखों में लहरें ज़रा दबा के चलो
शोर-ए-दिल को हौले से समझा दो
आरजू को कहीं ज़रा दफ़ना के चलो
दरख़्त पर सजे है चाँद-तारे सपनों के
किताबों से बचपन, जरा बचा के चलो
मर गया है सुब्रत इश्क़ में, गम के मारे
कहता है सुब्रत, जरा इश्क़ जगा के चलो....
~©अनुज सुब्रत
वह कहते है दर्द छुपा के चलो....... Written by Anuj Subrat ( Author of "Teri gali mein" )
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