जहाँ कोई नही है वहाँ हम है
जहाँ मैं हूँ वहाँ नदारद हमदम है
मैं, मैं था, वह, वह था ‘सुब्रत’
मैं, मैं हूँ, वह हम है
मैं कैसा हूँ, वह कैसी है
मैं दिलफेंक, दिलकश मेरी सनम है
काँपता जिस्म है काँपता मैं हूँ
गायब बदन से सब दम-ख़म है
कहाँ से आया हूँ कहाँ को जाना है
ये सब जो कुछ भी है सब भ्रम है
यादें कुछ नही है, सिर्फ दर्द है
अगर दर्द है तो ज़ाहिर है ज़ख्म है
पूछा तुमने भी नही माँगा मैंने भी नही
मालूम था मुझे तुम्हारे पास मरहम है.....
~©अनुज सुब्रत
कहाँ से आया हूँ कहाँ को जाना है....... Written by Anuj Subrat ( Author of "Teri gali mein" )
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