काश! जब मैं बड़ा होता
तब ऐसा होता
जलता हूँ गैर की माँ से मैं
काश! उसने मेरी माँ को न छीना होता
काँपते हाथ है कितना बेबस हूँ मैं
काश! मेरे साथ न ऐसा होता
कितना अच्छा होता की, न मैं होता
न तुम होते न ये जहां होता
आवाजें दे रहे होते सब मुझको
मैं बेखुदी में पड़ा होता
बेबसी का हाल मत पूछना ‘सुब्रत’ से
न तुम होते न मैं होता न ऐसा होता.....
~©अनुज सुब्रत
काश! जब मैं बड़ा होता......तब ऐसा होता...... Written by Anuj Subrat ( Author of "Teri gali mein" )
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