आशिक़ जब भी उस शहर से गुज़रता है
एक बार ज़रूर उसके दर से गुज़रता है
कितने ख़्वाब पाले थे उसने नहर के पास
हर बार वो रो रो कर नहर से गुज़रता है
जाने क्या क़यामत गुज़रती होगी उस पर
टूटा दिल जब आशना की कब्र से गुज़रता है
हमने देखी है बड़ी ज़ालिम है ये दिल्लगी
इश्क़ में आशिक़ कई दफ़ा मर के गुज़रता है
एक ज्वाला सी उठती है उसके दिल में
जब वह पुरानी यादों के शजर से गुज़रता है
कितनी ख्वाहिशें दम तोड़ देती होंगी ‘सुब्रत’
जब वह अपने टूटे बिखरे घर से गुज़रता है....
~©अनुज सुब्रत
शब्दार्थ :-
आशना :- प्रेमिका
शजर :- पेड़
आशिक़ जब भी उस शहर से गुज़रता है....... Written by Anuj Subrat ( Author of "Teri gali mein" )
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