तुमने वादा किया था बादा-ओ-जाम का
कह कर गई थी तुम आज शाम का
शहर-ओ-गाँव में है चर्चा तेरे हुस्न का
दिल लूटा है तेरी अदा ने तमाम का
मसला ये नही है ज़िंदगी कैसे गुज़रेगी
मसला तो है दर्द-ए-ज़िंदगी से आराम का
इतनी भी मत पिला मय उसको साक़ी
कहीं काफ़िर न हो जाए पुजारी राम का
मंदिर-मस्जिद से अच्छा मयखाना ‘सुब्रत’
दम तोड़े काफ़िर यहीं भक्त भी श्याम का.....
~©अनुज सुब्रत
तुमने वादा किया था बादा-ओ-जाम का....... Written by Anuj Subrat ( Author of "Teri gali mein" )
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