समझना ज़ीस्त को दुश्वार है ‘सुब्रत’
अना इतनी कि समझदार है ‘सुब्रत’
क्या गिला क्या शिकवा ज़माने से
बस दफन को बेकरार है ‘सुब्रत’
दर्द के लिबास में रूह है मेरी
पलकों पे दर्द का आबशार है ‘सुब्रत’
इतना मत सताओ की मर जाए हम
हाँ चश्म-ए-जानाँ से ख़्वार है ‘सुब्रत’....
~अनुज सुब्रत
शब्दार्थ :-
ज़ीस्त :- ज़िंदगी
दुश्वार :- मुश्किल
अना :- अहंकार , ego
गिला, शिक़वा :- शिकायत
आबशार :- झरना , waterfall
चश्म-ए-जानाँ :- The eyes of beloved
ख़्वार :- तबाह
समझना ज़ीस्त को दुश्वार है 'सुब्रत'......Written by Anuj Subrat ( Author of "Teri gali mein" )
Follow me on Instagram
Read my Book Teri gali mein
Thank you
Hope you'll loved it
Comments
Post a Comment