आँखों के दरिया का गालों पे आना
तेरा फिर से उन्हीं सवालों पे आना
है कैसा मुक़द्दर है कैसी जुदाई
मेरा फिर से उन्हीं मलालों पे आना
यादों से काटी है रातें कितनी हमने
उन बातों का दिल के छालों पे आना
वो मीठा सा लहजा वो तेरा जमाल
मेरा फिर से उन्हीं ख़्यालों पे आना
‘सुब्रत’ जो वो देखें छत से ये चाँद
मेरा अंधेरों से उन्हीं उजालों पे आना....
~©अनुज सुब्रत
शब्दार्थ:-
जमाल :- खूबसूरती, सुंदरता
आँखों के दरिया का गालों पे आना.....Written by Anuj Subrat ( Author of "Teri gali mein" )
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