ये जो तुम सबको अपना कर बैठे हो
तुमको मालूम नही तुम बहुत बुरा कर बैठे हो
इश्क़ को जो तुम अभी ज़न्नत बयाँ कर रहे हो
तुमको मालूम नही, तुम दर्द को कल का हमनवा कर बैठे हो
दूरियों की ज़ुस्तज़ू में तुम, सब कुछ भुला कर बैठे हो
तुमको मालूम नही तुम नजदीकियों को दफ़ना कर बैठे हो
नफ़स नफ़स में हमनफस तुम हो तुम्हारी यादें है
हमको मालूम नही तुम यादों से चरागे हयात जला कर बैठे हों
ता-उम्र जिसकी रंज-ओ-परेशानियाँ का सबब रहे तुम ‘सुब्रत’
इक अरसा बीत गया अब क्यूँ तुम उसकी कब्र सजा कर बैठे हो
~©अनुज सुब्रत
ये जो तुम सबको अपना कर बैठे हो.... Written by Anuj Subrat (Author of "Teri gali mein" )
हमनवा :- साथी
नफ़स :- साँस
हमनफस :- जो आपके साथ साँस ले
चरागे हयात :- ज़िंदगी का दीया
इक अरसा :- लम्बा समय
ता-उम्र :- पूरी उम्र
रंज-और-परेशानियाँ :- दुःख और परेशानियाँ
सबब :- कारण
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