हम जो तुम पे माइल है तुम हो कि नही तुम हो वरक़ - ए - दिल है तुम हो कि नही वाइज - ए - नादाँ से परेशाँ है हम तेरे लिए ये दिल तेरा क़ाइल है तुम हो कि नही चाँद आँचल है तेरा अम्बर में रहती हो कहते है हूर - शमाइल है तुम हो कि नही पहलू में तुमको छुपा लूँ असरार में भी मगर हम तो क़ाबिल है तुम हो कि नही है हम भी हैरान दस्तूर - ए -जहां से ‘सुब्रत’ चार - सू चश्म - ए - क़ातिल है तुम हो कि नही..... ~©अनुज सुब्रत शब्दार्थ:- माइल :- Bent, attracted वरक़-ए-दिल :- दिल का पन्ना वाइज-ए-नादाँ :- नादान उपदेशक हूर-शमाइल :- अप्सरा जैसी गुणों की मालिक, अत्यधिक सुंदर असरार :- राज , भेद चार-सू :- चारों ओर चश्म-ए-क़ातिल :- क़ातिल की निगाह
Anuj Subrat